सवाल: इस चक्रव्यूह को क्यों नहीं तोड़ पाते? जवाब: भारत आते रहते हैं पाक एजेंट, इन एजेंटों के मार्फत ही आत्महत्या करने वाला परिवार भी भारत आया था

देचू में पाक विस्थापितों की सामूहिक आत्महत्या के पीछे भारत में काम करने वाले नेक्सस का हाथ सामने आ रहा है, जिनके तार पाकिस्तानी एजेंटों से भी जुड़े हैं। इनके पास फाॅरेन रजिस्ट्रेशन ऑफिस (एफआरओ) और गृह मंत्रालय तक की जानकारी है। पाकिस्तान के मीरपुर खास के मनजी लुहार का नेटवर्क सबसे बड़ा है, जो धार्मिक वीजा दिलाने का धंधा करता है।

इसके अलावा नौ-कोट मीठी का रहने वाला दिलीप मेघवाल व खींपरो, सांगड़ जिले का मोहन माली भी इसी नेक्सस का हिस्सा हैं। इन एजेंटों के मार्फत ही आत्महत्या करने वाला परिवार भी भारत आया था। वह पूरे जत्थे काे गैरकानूनी तरीके से रामदेवरा ले गया था। गृह मंत्रालय ने उसे ब्लैक लिस्टेड कर दिया ताे उसकी जगह मोहन माली ने ले ली।

यही पाकिस्तानी एजेंट धार्मिक जत्था लेकर जोधपुर पहुंचते हैं और जोधपुर के एजेंट गंगाराम की बसों में बैठा कर हरिद्वार ले जाते हैं। हरिद्वार का एजेंट लक्ष्मण जिसे अभी नागरिकता नहीं मिली है, प्रति पासपोर्ट 500 रुपए लेकर एंट्री कराता है। एफआरओ के पास इन पाक एजेंटों की पूरी जानकारी है, क्योंकि ये एजेंट जत्थेदार बनकर कई बार भारत आते-जाते हैं। इनकी भी एंट्री होती है। धार्मिक यात्रा पर आए कुछ लोग जोधपुर में रुक जाते हैं और बचे एजेंट के साथ पाकिस्तान चले जाते हैं।

चूंकि पाक एजेंट बार-बार भारत आते हैं इसलिए उनका संबंध स्थानीय एजेंटों से बना रहता है। जब कोई स्थानीय एजेंटों की मनमानी का विरोध करता है तो वे जोधपुर में बसे विस्थापितों के दूसरे परिजनों को पाकिस्तान से बुलाने में अड़चन डालते हैं। लक्ष्मी और प्रिया सबसे बाद में भारत आई थीं, दोनों इसलिए ब्लैकमेल हुईं, क्योंकि स्थानीय एजेंटों की बात नहीं मानती तो पाकिस्तान से आ नहीं पाती। जोधपुर में विवाद होने के बाद सभी एजेंट उनके दुश्मन बन गए थे।

पाक एजेंट बताते हैं कितने गारंटर चाहिए
पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू परिवार पलायन के लिए वीजा का आवेदन करते हैं, उनके फाॅर्म एंबेसी से भारत पहुंचते हैं और यहां गृह मंत्रालय होते हुए जोधपुर स्थित एफआरओ आ जाते हैं। एफआरओ में घूमने वाले गंगाराम, चेतन, भागचंद जैसे लोगाें को पता चल जाता है कि कौन-कौन आ रहे हैं, इसलिए वे सभी के लिए गारंटर बनाना शुरू कर देते हैं।

कुछ साल पहले तक एक-एक गारंटर ने सौ-सौ विस्थापितों की गारंटी दे रखी थी। तब सीआईडी एसपी श्वेता धनखड़ ने यह नेटवर्क तोड़ा और अलग-अलग परिवार के लिए अलग गारंटर बनाने शुरू किए। गारंटर तय होने पर एफआरओ उनकी पॉजिटिव रिपोर्ट गृह मंत्रालय को भेज देता है, इससे पाक से आने वालों को वीजा मिल जाता है।

थार एक्सप्रेस से उतरते ही फंसा लेते हैं
वीजा मिलने पर ये लोग थार लिंक एक्सप्रेस से जोधपुर में भगत की कोठी रेलवे स्टेशन पहुंचते हैं। उन्हें तीन गुणा ज्यादा किराया देकर हरिद्वार जाना पड़ता है। वैसे तो इन लोगों को वीजा अवधि तक हरिद्वार में रहना होता है, परंतु ये दो-चार दिन बाद जोधपुर लौट आते हैं और यहीं रहने लगते हैं। इसके बाद एजेंट प्रति व्यक्ति पैसा लेकर एलटीवी के फाॅर्म भरवाता है और गारंटर तय कराता है।

सामूहिक आत्महत्या करने वाला परिवार विजिटर वीजा पर आया था, इसलिए उसे हरिद्वार जाने की जरूरत तो नहीं थी, परंतु रिश्तेदार की गारंटी जरूरी थी। रिश्तेदार भी अभी तक भारतीय नागरिक नहीं बने थे इसलिए चेतन भील के मार्फत सुनील भाटी ने एफआरओ में शपथ पत्र दिए, जबकि दोनों की इस परिवार से कोई रिश्तेदारी नहीं है, सिर्फ एक समाज के लोग हैं।

अब तस्वीरों में संघर्ष और यादें...

मलकी देवी शनिवार को परिवार की तस्वीरें देखती मिलीं। बोलीं- परिवार ने बहुत संघर्ष किया। पाक से बचकर भारत तक पहुंचें, लेकिन पहले मददगार बने लोगों को इस परिवार की आजादी अच्छी नहीं लगती थी। पुलिस ने भी मदद नहीं की।

गारंटी देने वालों की पैसा वसूलने की शिकायतें आती हैं
सिंध-कराची तक से आने वाले हिंदू विस्थापित जोधपुर में ही स्थाईवास लेते हैंं। अभी 18 हजार लोग लाॅन्ग टर्म वीजा पर हैं, जिनको भारत की नागरिकता मिलने का इंतजार है। सीएएए लागू हो जाता है ताे लगभग 12 हजार लोगाें को तुरंत नागरिकता मिल सकती है। इससे विस्थापिताें काे ब्लैकमेलिंग से निजात मिल सकती है।


विदेशी पंजीयन अधिकारी सुनीला बताती हैं कि गारंटी देने वालाें द्वारा पैसा वसूलने की शिकायतें आती हैं। विस्थापिताें काे गारंटी छोड़ने की धमकियां मिलना आम बात है, लेकिन उनकी भी मजबूरी रहती है, इसलिए पुलिस भी कुछ कर नहीं पाती। गारंटर पर सख्ती रखने के लिए विभाग ने यह तय कर रखा है कि जब तक उसकी मौत नहीं हो जाती और वह शहर छाेड़ नहीं देता, हम उसे नहीं बदलते। हालांकि 200 रुपए के स्टाॅम्प पर गारंटर बदलने का प्रावधान है।

पुलिस जांच नाकाफी, न्यायिक जांच होनी चाहिए

  • विस्थापितों की सामूहिक आत्महत्या में पुलिस की जांच नाकाफी है। मुख्यमंत्री जब विस्थापित परिवारों से मिलने आए थे, तब कह गए थे कि जिनसे चाहे उनसे जांच करवा सकते हैं। पुलिस हत्या या आत्महत्या की जांच कर रही है, परंतु पूरा नेक्सस तोड़ना जरूरी है। इसमें न्यायिक जांच होनी चाहिए और पूरा सिस्टम ठीक करने की गाइडलाइन बननी चाहिए। हम मुख्यमंत्री से यह मांग करेंगे। - हिंदूसिंह सोढ़ा, संयोजक, सीमांत लोक संगठन


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अब तस्वीरों में संघर्ष और यादें... 


source https://www.bhaskar.com/local/rajasthan/news/question-why-cant-we-break-this-cycle-answer-pak-agents-keep-coming-to-india-through-these-agents-the-family-who-committed-suicide-also-came-to-india-127666985.html

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